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कश्मीर बहुत छोटा है आज़ादी के लिए
कश्मीरी मुसलमानों के हित में यही है कि वे यथापूर्व स्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न करें क्योंकि टालमटोल वाली राजनीतिक नीति के रहते यह नामुमकिन है कि “आर या पार” जैसा कोई रवैया भारत सरकार अख्तियार करे।
निष्कर्षों में फटकार, सिफारिशों में पुचकार
बाबरी मस्जिद मामले की तफ़्तीश कर रही लिब्रहान आयोग की 17 साल बाद जारी रपट ने साजिश का पर्दाफाश तो किया पर देश को साम्प्रदायिक प्रलय की ओर ढकलने के लिए दोषी पाये गये 68 व्यक्तियों को सजा देने की बात पर चुप्पी साध ली।
और फिर, वे मुझे मारने आए
श्रीलंका जैसे संघर्षरत देश में सच बोलने के खतरे जानते हुये भी कुछ पत्रकार अन्तरात्मा की पुकार पर कलम थामे हुये हैं। प्रस्तुत लेख द संडे लीडर के दिवंगत संपादक का अंतिम संपादकीय है जिसे उन्होंने अपनी हत्या किये जाने पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।
भइया नक्को, बहिनजी पाहिजे
महाराष्ट्र की राजनीति में दलित मुद्दे का मराठी-गैर मराठी मुद्दे से महत्त्व कम नहीं है। बसपा यहाँ पवार, ठाकरे, चव्हाण जैसों का दबदबा खत्म कर सकती है।
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गुमनामी में बहुत खुश हूँ: फ़ेक आईपीएल प्लेयर
FIP वापस आ रहा है, पर क्या यह दोबारा इतिहास रचेगा या फिर बीसीसीआई या दूसरों के साथ कानूनी विवादों में गुम होकर रह जायेगा? पढ़िये ‘ग्रेट बाँग’ अर्नब रे द्वारा लिया साक्षात्कार।
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बीते 20 सालों में कुछ ग्रामीण औरतों ने घर के दायरे से बाहर निकल, पंचायती राजनीति में कदम रख ग्रामीण भारत को बदलने की कोशिश की है। उन्हीं की कथायें है “सरपंच साहिब” में। पढ़िये डॉ सुनील दीपक की समीक्षा।
गैस आंदोलन ने दी अपारंपरिक शिक्षा
भोपाल गैस त्रासदी के 25 वर्ष पर यूरिग सैनदरेट बता रहे हैं कि किस तरह से गरीब और निरीह जनता ने नित्य प्रति जीवन में दमन के प्रति पहले लचीलापन दिखाया और इसे प्रतिरोध तथा राजनैतिक प्रतिवाद में कैसे बदला।