वर्ष 2009 को अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है – वर्ष 1609 में गैलीलियो द्वारा खगोलीय प्रेक्षण आरंभ करने की घटना की 400वीं जयंती के रूप में। इस शृंखला के दूसरे लेख में हम गैलीलियो को याद कर रहे हैं जिन्हें आधुनिक प्रायोगिक विज्ञान का जन्मदाता कहा जाता है।

IYA Special

धुनिक इटली के पीसा नामक शहर (पीसा की टेढ़ी मीनार के लिए प्रसिद्ध) में 15 फरवरी 1564 को गैलीलियो गैलिली का जन्म हुआ। अधिकांश लोग गैलीलियो को एक खगोलविज्ञानी के रूप में याद करते हैं जिसने दूरबीन में सुधार कर उसे अधिक शक्तिशाली तथा खगोलीय प्रेक्षणों के लिए उपयुक्त बनाया और साथ ही अपने प्रेक्षणों से ऐसे चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए जिसने खगोल विज्ञान को नई दिशा दी और आधुनिक खगोल विज्ञान की नींव रखी। पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि खगोलविज्ञानी होने के अलावा वे एक कुशल गणितज्ञ, भौतिकीविद् और दार्शनिक भी थे जिसने यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसीलिए गैलीलियो को ”आधुनिक खगोल विज्ञान के जनक”, ”आधुनिक भौतिकी का पिता” या ”विज्ञान का पिता” के रूप में संबोधित किया जाता है।

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि खगोलविज्ञानी होने के अलावा वे एक कुशल गणितज्ञ, भौतिकीविद् और दार्शनिक भी थे जिसने यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

गैलीलियो को सूक्ष्म गणितीय विश्लेषण करने का कौशल संभवत: अपने पिता विन्सैन्जो गैलिली से विरासत में आनुवांशिक रूप में तथा कुछ उनकी कार्यशैली को करीब से देख कर मिला होगा। विन्सैन्जो एक जाने-माने संगीत विशेषज्ञ थे और ‘ल्यूट’ नामक वाद्य यंत्र बजाते थे जिसने बाद में गिटार और बैन्जो का रूप ले लिया। उन्होंने भौतिकी में पहली बार ऐसे प्रयोग किए जिनसे ”अरैखिक संबंध” का प्रतिपादन हुआ। तब यह ज्ञात था कि किसी वाद्य यंत्र की तनी हुई डोर (या तार) के तनाव और उससे निकलने वाली आवृत्ति में एक संबंध होता है, आवृत्ति तनाव के वर्ग के समानुपाती होती है। इस तरह संगीत के सिद्धांत में गणित की थोड़ी बहुत पैठ थी। प्रेरित हो गैलीलियो ने पिता के कार्य को आगे बढ़ाया और फिर उन्होंने बाद में पाया कि प्रकृति के नियम गणित के समीकरण होते हैं। गैलीलियो ने लिखा है – ”भगवान की भाषा गणित है”।

गैलीलियो ने दर्शन शास्त्र का भी गहन अध्ययन किया था साथ ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे। पर वे अपने प्रयोगों के परिणामों को कैसे नकार सकते थे जो पुरानी मान्यताओं के विरुद्ध जाते थे और वे इनकी पूरी ईमानदारी के साथ व्याख्या करते थे। उनकी चर्च के प्रति निष्ठा के बावजूद उनका ज्ञान और विवेक उन्हें किसी भी पुरानी अवधारणा को बिना प्रयोग और गणित के तराजू में तोले मानने से रोकता था। चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा समझा। पर गैलीलियो की इस सोच ने मनुष्य की चिंतन प्रक्रिया में नया मोड़ ला दिया। स्वयं गैलीलियो अपने विचारों को बदलने को तैयार हो जाते यदि उनके प्रयोगों के परिणाम ऐसा इशारा करते। अपने प्रयोगों को करने के लिए गैलीलियो ने लंबाई और समय के मानक तैयार किए ताकि यही प्रयोग अन्यत्र जब दूसरी प्रयोगशालाओं में दुहराए जाएं तो परिणामों की पुनरावृत्ति द्वारा उनका सत्यापन किया जा सके।

गैलीलियो ने प्रकाश की गति नापने का भी प्रयास किया और तत्संबंधी प्रयोग किए। गैलीलियो व उनका एक सहायक दो भिन्न पर्वत शिखरों पर कपाट लगी लालटेन लेकर रात में चढ़ गए। सहायक को निर्देश दिया गया था कि जैसे ही उसे गैलीलियो की लालटेन का प्रकाश दिखे उसे अपनी लालटेन का कपाट खोल देना था। गैलीलियो को अपने कपाट खोलने व सहायक की लालटेन का प्रकाश दिखने के बीच का समय अंतराल मापना था-पहाड़ों के बीच की दूरी उन्हें ज्ञात थी। इस तरह उन्होंने प्रकाश की गति ज्ञात की।

पर गैलीलियो – गैलीलियो ठहरे – वे इतने से कहां संतुष्ट होने वाले थे। अपने प्रायोगिक निष्कर्ष को दुहराना जो था। इस बार उन्होंने ऐसी दो पहाड़ियों का चयन किया जिनके बीच की दूरी कहीं ज्यादा थी। पर आश्चर्य, इस बार भी समय अंतराल पहले जितना ही आया। गैलीलियो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रकाश को चलने में लग रहा समय उनके सहायक की प्रतिक्रिया के समय से बहुत कम होगा और इस प्रकार प्रकाश का वेग नापना उनकी युक्ति की संवेदनशीलता के परे था। पर गैलीलियो द्वारा बृहस्पति के चंद्रमाओं के बृहस्पति की छाया में आ जाने से उन पर पड़ने वाले ग्रहण के प्रेक्षण से ओल रोमर नामक हॉलैंड के खगोलविज्ञानी को एक विचार आया। उन्हें लगा कि इन प्रेक्षणों के द्वारा प्रकाश का वेग ज्ञात किया जा सकता है। सन् 1675 में उन्होंने यह प्रयोग किया जो इस तरह का प्रथम प्रयास था। इस प्रकार यांत्रिक बलों पर किए अपने मुख्य कार्य के अतिरिक्त गैलीलियो के इन अन्य कार्यों ने उनके प्रभाव क्षेत्र को कहीं अधिक विस्तृत कर दिया था जिससे लंबे काल तक प्रबुद्ध लोग प्रभावित होते रहे।

IYA Special

"ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं न कि पृथ्वी की", कॉपरनिकस के इस सिद्धांत का गैलीलियो ने समर्थन किया। पर इस "भूल" के लिये चर्च ने उन्हें दिया कारावास। 1992 में वैटिकन ने यह स्वीकार किया कि गैलीलियो के मामले में उनसे गलती हुई थी।

गैलीलियो ने आज से बहुत पहले गणित, सैद्धांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी के परस्पर संबंध को समझ लिया था। परवलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि एक समान त्वरण (uniform acceleration) की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग पर चल कर वापस पृथ्वी पर आ गिरेगा – बशर्ते हवा के घर्षण का बल उपेक्षणीय हो। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि उनका यह सिद्धांत जरूरी नहीं कि किसी ग्रह जैसे पिंड पर भी लागू हो। उन्हें इस बात का ध्यान था कि उनके मापन में घर्षण (friction) तथा अन्य बलों के कारण अवश्य त्रुटियां आई होंगी जो उनके सिद्धांत की सही गणितीय व्याख्या में बाधा उत्पन्न कर रहीं थीं। उनकी इसी अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकीविद् आइंस्टाइन ने उन्हें ”आधुनिक विज्ञान का पिता” की पदवी दे डाली। कथन में कितनी सचाई है पता नहीं – पर माना जाता है कि गैलीलियो ने पीसा की टेढ़ी मीनार से अलग-अलग संहति (mass) की गेंदें गिराने का प्रयोग किया और यह पाया उनके द्वारा गिरने में लगे समय का उनकी संहति से कोई सम्बन्ध नहीं था – सब समान समय ले रहीं थीं। ये बात तब तक छाई अरस्तू की विचारधारा के एकदम विपरीत थी – क्योंकि अरस्तू के अनुसार अधिक भारी वस्तुएं तेजी से गिरनी चाहिए। बाद में उन्होंने यही प्रयोग गेदों को अवनत तलों पर लुढ़का कर दुहराए तथा पुन: उसी निष्कर्ष पर पहुंचे।

गैलीलियो ने त्वरण के लिए सही गणितीय समीकरण खोजा। उन्होंने कहा कि अगर कोई स्थिर पिंड समान त्वरण के कारण गतिशील होता है तो उसकी चलित दूरी समय अंतराल के वर्ग के समानुपाती होगी।

S = ut + ½ft2, if u = 0 then S = ½ft2 or S ∝ t2

गैलीलियो ने ही जड़त्व का सिद्धांत हमें दिया जिसके अनुसार ”किसी समतल पर चलायमान पिंड तब तक उसी दिशा व वेग से गति करेगा जब तक उसे छेड़ा न जाए”। बाद में यह जाकर न्यूटन के गति के सिद्धांतों का पहला सिद्धांत बना। पीसा के विशाल कैथेड्रल (चर्च) में झूलते झूमर को देख कर उन्हें ख्याल आया क्यों न इसका दोलन काल नापा जाए – उन्होंने अपनी नब्ज की धप-धप की मदद से यह कार्य किया – और इस प्रकार सरल लोलक का सिद्धांत बाहर आया – कि लोलक का आवर्त्तकाल उसके आयाम (amplitude) पर निर्भर नहीं करता (यह बात केवल छोटे आयाम पर लागू होती है – पर एक घड़ी का निर्माण करने के लिए इतनी परिशुद्धता काफी है)। सन् 1632 में उन्होंने ज्वार-भाटे की व्याख्या पृथ्वी की गति द्वारा की। इसमें उन्होंने समुद्र की तलहटी की बनावट, इसके ज्वार की तरंगों की ऊंचाई तथा आने के समय में संबंध की चर्चा की – हालांकि यह सिद्धांत सही नहीं पाया गया। बाद में केपलर व अन्य वैज्ञानिकों ने इसे सुधारा और सही कारण – चंद्रमा को बताया।

जिसे आज हम आपेक्षिकता (Relativity) का सिद्धांत कहते हैं उसकी नींव भी गैलीलियो ने ही डाली थी। उन्होंने कहा है ”भौतिकी के नियम वही रहते हैं चाहे कोई पिंड स्थिर हो या समान वेग से एक सरल रेखा में गतिमान। कोई भी अवस्था न परम स्थिर या परम चल अवस्था हो सकती है”। इसी ने बाद में न्यूटन के नियमों का आधारगत ढांचा दिया। सन् 1609 में गैलीलियो को दूरबीन के बारे में पता चला जिसका हालैंड में आविष्कार हो चुका था। केवल उसका विवरण सुनकर उन्होंने उससे भी कहीं अधिक परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली। फिर शुरू हुआ खगोलीय खोजों का एक अद्भुत अध्याय। गैलीलियो ने चांद को देखा उसके ऊबड़-खाबड़ गङ्ढे देखे। फिर उन्होंने दूरबीन चमकीले शुक्र ग्रह पर साधी – एक और नई खोज – शुक्र ग्रह भी (चंद्रमा की तरह) कला (phases) का प्रदर्शन करता है। जब उन्होंने बृहस्पति ग्रह को अपनी दूरबीन से निहारा, फिर जो देखा और उससे उन्होंने जो निष्कर्ष निकाला उसने सौरमंडल को ठीक-ठीक समझने में बड़ी मदद की। गैलीलियो ने देखा की बृहस्पति ग्रह के पास तीन छोटे-छोटे ”तारे” जैसे दिखाई दे रहे हैं। कुछ घंटे बाद जब दुबारा उसे देखा तो वहां तीन नहीं बल्कि चार ”तारे” दिखाई दिए। गैलीलियो समझ गए कि बृहस्पति ग्रह का अपना एक अलग संसार है। उसके गिर्द घूम रहे ये पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। (तब तक यह माना जाता था कि ग्रह और सूर्य सभी पिंड पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। हालांकि निकोलस कॉपरनिकस गैलीलियो से पहले ही यह कह चुके थे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं न कि पृथ्वी की – पर इसे मानने वाले बहुत कम थे। गैलीलियो की इस खोज से सौरमडंल के सूर्य केंद्रित सिद्धांत को बहुत बल मिला।)

1609 में गैलीलियो को दूरबीन के बारे में पता चला जिसका हालैंड में आविष्कार हो चुका था। केवल उसका विवरण सुनकर उन्होंने कहीं अधिक परिष्कृत व शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली।

इसके साथ ही गैलीलियो ने कॉपरनिकस के सिद्धांत को खुला समर्थन देना शुरू कर दिया। ये बात तत्कालीन वैज्ञानिक और धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध जाती थी। गैलीलियो के जीवनकाल में इसे उनकी भूल ही समझा गया। सन् 1633 में चर्च ने गैलीलियो को आदेश दिया कि वे सार्वजनिक रूप से कहें कि ये उनकी बड़ी भूल है। उन्होंने ऐसा किया भी। फिर भी गैलीलियो को कारावास भेज दिया गया। बाद में उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के मद्देनजर सजा को गृह-कैद में तब्दील कर दिया गया। अपने जीवन का अंतिम दिन भी उन्होंने इसी कैद में गुज़ारा। कहीं वर्ष 1992 में जाकर वैटिकन शहर स्थित ईसाई धर्म की सर्वोच्च संस्था ने यह स्वीकारा कि गैलीलियो के मामले में उनसे गलती हुई थी। यानी उन्हें तीन सौ से अधिक साल लग गए असलियत को समझने और स्वीकारने में।

जब गैलीलियो पीसा के विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान के प्राध्यापक थे तो उन्हें अपने शिष्यों को यह पढ़ाना पढ़ता था कि ग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। बाद में जब वे पदुवा नामक विश्वविद्यालय में गए तब उन्हें जाकर निकोलस कॉपरनिकस के नए सिद्धांत का पता चला था। खुद अपनी दूरबीन द्वारा किए गए प्रेक्षणों से (विशेषकर बृहस्पति के चंद्रमा देख कर) वे अब पूरी तरह आश्वस्त हो चुके थे कि कॉपरनिकस का सूर्य-केंद्रित सिद्धांत ही सौरमंडल की सही व्याख्या करता है। बहत्तर साल की अवस्था को पहुंचते-पहुंचते गैलीलियो अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह खो चुके थे। बहुत से लोग यह मानते हैं कि उनका अंधापन अपनी दूरबीन द्वारा सन् 1613 में सूर्य को देखने (जिसके द्वारा उन्होंने सौर-कलंक या सनस्पॉट्स भी खोजे थे) के कारण उत्पन्न हुआ होगा। पर जांच करने पर पता चला कि ऐसा मोतियाबिंद के आ जाने और आंख की ग्लौकोमा नामक बीमारी के कारण हुआ होगा।

सन् 1642 में गृह-कैद झेल रहे गैलीलियो की 8 जनवरी को मृत्यु हो गई। कुछ मास बाद उसी वर्ष न्यूटन का जन्म हुआ। इस तरह कह सकते हैं कि तब एक युग का अंत और एक और नए क्रांतिकारी युग का शुभारंभ हुआ।

आविष्कार पत्रिका से साभार