दर्पण मेरे यह तो बता

क्या सोशियल मीडिया कंसल्टेंट सोशियल मीडिया को नुकसान पहुंचा रहे हैं?
बड़ी मज़ेदार जात है सोशियल मीडिया कंसल्टेंट्स की। अक्सर ये वो लोग होते हैं जिन्होंने अपने ब्लॉग से कुछ सफलता हासिल की होती है और फिर इन्हें लगता है कि इसी के गुर कंपनियों को सिखाने के काम को व्यवसाय क्यों न बना लिया जाय। सबसे पहले ये आपको अपनी कंपनी का ब्लॉग बनाने को कहेंगे, दीगर बात है कि अधिकतर ऐसे ब्लॉग फीके ही होते हैं और कोई इन्हें नहीं पढ़ता। फिर ये आपको यूट्यूब, फ़ेसबुक और सेकंडलाईफ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का सुझाव देगें।

सारे वाईरल कैंपेन का यही हाल है, दिक्कत यह है हज़ारों लोग मैदान में हैं। अब बताईये आपने अपने फ़ेसबुक खाते में कितने कार्पोरेट विजेट लगाये हैं? शायद एक भी नहीं!

दर्पण मेरे यह तो बता

George Bush

तिराहे पर खड़ा एक देश जहाँ एक पुराना प्रशासन जा रहा है और एक नये का पदार्पण हुआ है। कुछ लोग पुरानी चीज़ें भुला कर नई शुरुवात करना चाहेंगे पर चित्र हमें यह भूलने नहीं देते। वे याद दिलाते हैं कि हम सब का एक अतीत रहा है और हम पुराने अनुभवों का जोड़ हैं। एसोसियेट प्रेस, एजेंस फ्रांस और रायटर्स के फोटोग्राफर अमरीकी राष्ट्रपति के साथ हर जगह जाते हैं। न्यूयॉर्क टाईम्स ने इन एजेंसियों के फोटो संपादकों से इन चित्रों में से ऐसे चुनने के लिये कहा जिनमें बुश के व्यक्तित्व और प्रशासन के बारे में झलक मिलती हो।

भारत हम सब को बचाने वाला स्पाँज है
दक्षिणी एशिया में भेद्य अमरीकी निशानों के होते लश्कर ने अमरीका के बजाय इन्हीं पर हमला करना आसान पाया है। दुर्भाग्य से भारत हम सब को बचाने वाला स्पाँज बन गया है। विगत तीस सालों में वैश्विक आतंकवाद का केंद्र बन चुके पाकिस्तान से नज़दीकी के कारण भारत को उन आतंकवादी गुटों के हमले सहने पड़ रहे हैं जो उसे इस्राईल और अमरीका जैसा अपना दुश्मन मानता है।

NDTV ने ब्लॉगर पर डाली कानूनी नकेल
मुंबई पर आतंकी हमले होते हैं। मीडिया रपट देता है। ब्लॉगर ब्लॉग लिखते हैं। ट्विटर करने वाले ट्वीट करते हैं। लोगों को मीडिया की कवरेज पसंद नहीं आती। ब्लॉगर मीडिया की भूमिका पर अपनी राय लिखते हैं। मीडिया ब्लॉगर पर मानहानी का मामला ठोक देता है। ब्लॉगर बिना शर्त अपनी “आपत्तिजनक” पोस्ट वापस ले लेता है। ब्लॉगर फिर ब्लॉग लिखते हैं। ट्विटर करने वाले फिर ट्वीट करते हैं।

मेरे ख्याल से अब तक मामला आप समझ गये होंगे। अगर नहीं. तो कुछ दिनों पहले ही हमनें स्ट्राईसेंड प्रभाव पर जो लेख प्रकाशित किया था उसे पढ़ें।

ग्लोबल वार्मिंग के घपले की कहानी
वेदर चैनल के संस्थापक जॉन कॉलमैन का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कथन के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह एक अफवाह है। विज्ञान का गलत प्रयोग है। सार्वजनिक नीति का दुरुपयोग। कोई मज़ाक नहीं, इतिहास का सबसे बड़ा घपला है यह।

झपकी लीजीये
दोपहर में हल्की झपकी लेने से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता हैसालों तक झपकी लेने को आलस्य का प्रतीक माना जाता रहा है। अक्सर हमें झपकी लेते “पकड़ा” जाता है। पर हालिया वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि दोपहर में हल्की झपकी लेने से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। झपकी से रचनात्मकता, मूड, उत्पादकता और चौकन्नापन बढ़ता है। एक घंटे की झपकी से 10 घंटे चौकन्नापन बढ़ता है।

नासा के पायलटों के खोज से पता चला है कि अगर फ्लाईट के दौरान वह 26 मिनट झपकी ले ले तो उत्पादकता 34% बढ़ती है और चौकन्नापन 54%। बस यह ख्याल रखना पड़ता है कि झपकी लेते समय जहाज को-पायलट या आटोपायलट मोड में हो 😉

 

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