रोजगार पोर्टल पहुंचे गाँव देहात

कु

छ साल पहले तक, खास ग्रामीण भारत के लिए एक जॉब पोर्टल की बात अकल्पनीय होती। इंटरनेट की पहुंच बहुत कम थी – आज भी, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, देश के 1.2 अरब लोगों के बीच इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या केवल 1 करोड़ 28 लाख है। यहाँ तक कि बाजार अनुसंधान फर्म IMRB इंटरनेशनल ने अपने एक अध्ययन में पाया कि सितम्बर 2008 तक हमारे यहाँ 4 करोड़ 53 लाख सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जिनमें से 4 करोड़ 20 लाख शहरी थे। 30% की वृद्धि दर के बावजूद, ग्रामीण प्रयोक्ताओं की संख्या आज की तारीख में संतोषजनक नहीं कही जा सकती।

इसके बावजूद हाल के वर्षों में कई ग्रामीण रोजगार पोर्टलों को शुरू किया गया है। इनमें अग्रणी थी रूरल नौकरी डॉट कॉम, जिसने 2001 में ग्रामीण क्षेत्रों में कार्पोरेट और गैर सरकारी संगठनों में रोजगार के अवसरों के विज्ञापनों द्वारा शुरूवात की थी। इसके संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अजय गुप्ता ने हाल ही में शहरी क्षेत्रों में रोजगार की तलाश करते ग्रामीण युवाओं के लिए विलेज नौकरी डॉट कॉम का प्रारंभ किया है।

इन वेबसाइटों को अब उपभोक्ता वस्तुओं की दिग्गज कंपनी आईटीसी जैसी स्थापित कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। आईटीसी ने वैश्विक ऑनलाइन रोजगार फर्म मॉन्सटर के साथ भागीदारी कर रोज़गार दुनिया डॉट कॉम की स्थापना की है। रोज़गार दुनिया का संचालन कर रहे आईटीसी के कृषि व्यापार विभाग के प्रमुख एस. शिवकुमार कहते हैं, “मेरा मानना है कि कुछ सालों में इस बाजार में विस्फोटक बढ़त होगी”। भारत, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में मॉन्सटर के प्रबंध निदेशक संजय मोदी कहते हैं, “रोज़गार दुनिया एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा और भारत में समग्र विकास की सरकार की योजना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा”।

एक और प्रतियोगी है SREI इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस की सहायक संस्था SREI सहज ई-विलेज, जिसने हाल ही में चाकरी डॉट इन शुरू की। “हमें ग्रामीण भारत की क्षमता में विश्वास है। इसका सही समय आ गया है”, इस पोर्टल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सबाहत अज़ीम कहते हैं।

पहली बार, बात मुनाफे की

Rural Job Portalsग्रामीण रोजगार कुछ समय से चर्चा के केंद्र में रहा है। वर्ष 2006 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) के तहत एक वृहद कार्यक्रम की शुरुवात की जिसके अंतर्गत ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष कम से कम 100 दिन के रोजगार का वायदा किया गया था। इस कार्यक्रम को 200 जिलों में शुरू किया गया था और धीरे धीरे पूरे देश में लागू किया गया है। हालिया केंद्रीय बजट में NREGA के तहत खर्च में 144 प्रतिशत वृद्धि कर इसे 320 करोड़ रुपये कर दिया गया और न्यूनतम दैनिक वेतन लगभग अस्सी रुपये तय किया गया। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कार्यक्रम के तहत 3 करोड़ परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है।

रोज़गार दुनिया और SREI सहज ई-विलेज के रूप में कॉर्पोरेट क्षेत्र पहली बार ऐसे क्षेत्र में मुनाफा कमाने के उद्देश्य से मैदान में उतरा है।

इसके अलावा गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी वाले अन्य प्रयास भी हुये हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि रोज़गार दुनिया और SREI सहज ई-विलेज के रूप में कॉर्पोरेट क्षेत्र पहली बार ऐसे क्षेत्र में मुनाफा कमाने के उद्देश्य से मैदान में उतरा है। SREI सहज के अज़ीम कहते हैं, “परोपकार की भावना यहाँ काम नहीं करती है। मुफ्त में मिली चीज का लोग सही मोल नहीं समझ पाते।” “यह लाभ के लिए बना उद्यम है”, आईटीसी के शिवकुमार कहते हैं। “हमें व्यापार के ज़रिये मुनाफे का एक हिस्सा मिलता है। फिलहाल, नौकरी के विज्ञापन पोस्ट करने और हमारे डेटाबेस के इस्तेमाल के एवज में नियोक्ता ही पैसा देते हैं। मॉन्सटर का यही पारंपरिक तरीका रहा है। कालक्रम में हम नौकरी खोजने वालों को कुछ अन्य वैल्यू एडेड सेवायें देने पर विचार करेंगे जिसके लिये उनसे शुल्क वसूला जायेगा।”

इसके साथ ही आईटीसी और SREI बुनियादी सुविधाएं भी ला रहे हैं। आईटीसी अपनी ई चौपालों के विशाल नेटवर्क का लाभ उठायेगा। 2000 में शुरू किये गये ई चौपाल गांवों में स्थित इंटरनेट खोखे हैं जो जमीनी स्तर पर स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन के एक प्रमुख घटक बन गए हैं। शिवकुमार कहते हैं, “हमारे पास 10 राज्यों के 100 जिलों में फैले 6500 से अधिक ई चौपाल हैं। फिलहाल हमने 10 जिलों में प्रायोगिक चरण के रूप में रोज़गार दुनिया की शुरुवात की है। हमारा जल्द ही उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 80 जिलों के 5000 ई चौपालों में इसका विस्तार करने का इरादा है।”

दूसरी ओर SREI के नेपथ्य में, सामान्य सेवा केंद्र (CSCs) का एक नेटवर्क है जिसकी केन्द्र और सात राज्य सरकारों के साथ सार्वजनिक निजी भागीदारी है। तकरीबन 15,000 CSCs पहले से ही कार्यरत हैं, यानि 27,000 के लक्ष्य का आधा रास्ता तक किया जा चुका है। प्रत्येक CSC एक उद्यमी द्वारा संचालित है जिसे लगभग सवा लाख रुपये की शुरूवाती लागत का 25 प्रतिशत निवेश करना होता है। SREI बुनियादी संचार ढांचा उपलब्ध कराता है। “प्रारंभ में रेलवे आरक्षण, बैंकिंग व बीमा सेवायें और प्रीपेड मोबाइल खातों के रीफिल जैसी अनेक बिज़नेस टू कंज्यूमर (B2C) सेवायें तैयार की जाएगी,” अज़ीम ने बताया। “अगले चरण में, हम जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने जैसी गवर्मेंट टू कंज़्यूमर सेवायें शुरू करेंगे।” SREI ने उद्यमियों को वित्तीय सलाह व ऋण प्रदान करने के लिये बैंकों के मदद की व्यवस्था की है।

जो दो बातें इन पोर्टलों को चलाये रखेंगी वे हैं मांग और यह तथ्य कि वे मुनाफा कमाने के लिये इस व्यवसाय में उतरे हैं। अज़ीम बताते हैं कि अगर लाभ कमाने पर ध्यान केंद्रित न हो तो, जैसा कि अक्सर सरकारी कार्यक्रमों के साथ होता है, लोगों का उत्साह गुल हो सकता है। “हमारी हर गतिविधि लाभदायक होनी ही चाहिये। ऑफ़लाइन मुनाफा उद्यमियों द्वारा कमाया जाता है, जबकि SREI ऑनलाइन गतिविधियों से लाभ कमाता है। कई सहज केन्द्र प्रति महीने चालीस हज़ार रुपये से अधिक कमाते हैं।” SREI की प्रारंभिक योजना के अंतर्गत 60 करोड़ डॉलर का निवेश किया जाना था, जिसका आधा शेष हिस्सा इस समय खर्च किया जा रहा है। अगले तीन वर्षों में कम से कम और 1 करोड़ डॉलर का निवेश किया जायेगा।

नतीजें प्रभावशाली हैं। SREI में, अब तक करीब 25000 ग्रामीण युवाओं को शहरों में नौकरियों दिलायी गयी हैं। भले ही काफी बड़ा लगे पर यह व्यवसाय अभी शुरुवाती चरण में हैं।

‘अविकसित क्षेत्र’ का विकास

“चाकरी.इन जैसी पहल से रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं,” वैश्विक मानव संसाधन कंपनी एडेक्को इंडिया के प्रबंध निदेशक सुधाकर बालकृष्णन बताते हैं। “इस पहल में ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के लक्ष्यों में शामिल हैं – बढ़ई, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, सुरक्षा गार्ड, राजमिस्त्री और नाई। ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार के लक्ष्य हो सकते हैं – ग्रामीण कंप्यूटर ऑपरेटर, डाटा एंट्री ऑपरेटर, ब्यूटिशन और स्वास्थ्य कर्मी।” अज़ीम के अनुसार: “सब से पहली नौकरी एक नाई के लिए हासिल की गई, जिसे कलकत्ता के एक महिलाओं और पुरुषों हेतु त्वचा-व-केश-संवर्धन सैलून आइकैचर्स में नौकरी मिली।”

पोर्टल कंपनियों को बढ़ती प्रतिस्पर्धा की चिंता नहीं हैं। “आज का ग्रामीण रोजगार व्यवसाय अभी पाषाण युग में है, जबकि इसमें सूचना प्रौद्योगिकी के युग तक पहुँचने की क्षमता है,” रूरल नौकरी के गुप्ता कहते हैं। “भारतीय ग्रामीण प्रसार के विशाल आकार को देखते हुए, यह क्षेत्र अभी तक ‘प्रतिस्पर्धा’ नाम की आर्थिक शब्दावली से अनजान है। यहां तक कि ई-चौपाल जैसी बड़ी परियोजनाएँ भी सागर में केवल एक बूंद हैं। इसलिए, रोज़गार दुनिया सरीखे प्रकल्प हर स्तर पर, चाहे वह सरकारी सहायता की बात हो या उम्मीदवारों और कॉर्पोरेट नियोक्ताओं को तैयार करने की बात हो, निष्क्रियता को कम कर संभवतः एक दूसरे की मदद ही करेंगे। इस अविकसित क्षेत्र को उपजाने के लिए खिलाड़ियों की एक बड़ी संख्या दरकार होगी।”

शहरी बाज़ारों में संतृप्ति के कारण अब ग्राम की ओर ध्यान जा रहा है। स्थानीय कर्मचारी बेहतर परिणाम ला सकते हैं क्योंकि वे कम कीमत पर और असीमित संख्या में उपलब्ध हैं।

गुप्ता के अनुसार, ग्रामीण रोजगार के क्षेत्र में तेज़ गतिविधि के तीन कारण हैं। “एक का संबन्ध है शहरी बाज़ारों की बहुचर्चित संतृप्ति से, जिसके कारण अब ध्यान ग्रामीण बाजारों की ओर जा रहा है। इन बाजारों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए स्थानीय कर्मचारी ही बेहतर परिणाम ला सकते हैं क्योंकि वे कम मूल्य पर और असीमित संख्या में उपलब्ध हैं। तीसरा पहलू कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के माध्यम से एक अभिनव व्यापार मॉडल के उद्भव से संबंधित है, जिसमें एक मॉडल दूसरे को बढ़ने में मदद करता है।”

हैदराबाद स्थित इंडियन स्कूल आफ बिज़नेस (ISB) में वित्त विभाग में सहायक प्रोफेसर राजेश चक्रवर्ती इस बढ़त को एक अलग नज़र से देखते हैं। “अव्वल तो पोर्टल शुरू करना एक कम निवेश का कारोबार है जिसमें जोखिम कुछ हद तक कम होता है” वे कहते हैं। “अधिकांश खर्च के पोर्टल का प्रचार करने पर ही होता है। दूसरी, ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रामीण भारत के बारे में सोच बदल रही है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय गांवों के मध्यम वर्ग में कुछ हल्कों में खासी समृद्धि है। इसके अलावा, बुनियादी ढांचे के विकास से अर्द्ध ग्रामीण कस्बे, देहातों से पहले से बेहतर तरीके से जुड चुके हैं और अलगाव कम हो रहा है। ग्रामीण युवाओं के बीच वेब पोर्टलों के बारे में चर्चा और कनेक्टिविटी की बदौलत कई लोग अब रोज़गार और नौकरियों के बारे में जानकार हो चुके हैं। इसके साथ ही शहरी केन्द्रों में कम और मध्यम कौशल के रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं और इस मांग की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों से ही की जा सकती है।

एडेक्को के बालकृष्णन बताते हैं कि भारत में इस समय 7.8% बेरोजगारी है। “पिछली जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 75 करोड़ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। भारत की 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है; इस कारण देश को अगले पांच वर्षों के दौरान 6 करोड़ नौकरियाँ पैदा करने की ज़रूरत है ताकि बेरोजगारी की दर काबू से बाहर न हो जाए। यह रोजगार सृजन और विकास के लिए एक बहुत बड़ा सुअवसर है।” परंतु टीमलीज़ सर्विसेज़ के सहसंस्थापक और अध्यक्ष मनीष सभरवाल को इन पोर्टलों की सफलता पर संदेह है। वे कहते हैं, “शर्तिया तौर पर यह कह पाना मुश्किल होगा कि रोजगार खोज रहे ग्रामीण सक्रिय रूप से इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं, हो सकता है कि यह अनुमान मात्र हो। उपयुक्त शुरुवाती उपाय शायद सेलफोन या एसएमएस का माध्यम होता जिसकी पैठ गहरी होने पर इसे इंटरनेट पर रूपांतरित किया जा सकता था।”

सुधार ही है दीर्घकालिक समाधान

रोजगार कार्यालय तो नाकाम रहे हैं, पर क्या ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कामयाब रहा? टीमलीज़ के सभरवाल कहते हैं, “अपने मौजूदा रूप में NREGA केवल अकुशल श्रमिकों के लिए ही काम का है।” भारत की ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या का संपूर्ण हल अब तक न तो NREGA है और न ही रोजगार पोर्टल। “हल अर्थव्यवस्था का निरंतर दीर्घकालिक विकास ही है, कुछ और नहीं”, चक्रवर्ती कहते हैं। “यदि भारत की बढ़त दर अगले दो दशकों में 9 प्रतिशत से अधिक रही, तो फायदे चहुं ओर फैलेंगे और ग्राम और शहर का फासला 10 से 15 साल में मोटे तौर पर खत्म हो जायेगा। लोगों को तब कृषि से दूर जाना ही होगा, लेकिन यह उद्योग और विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) द्वारा खेती योग्य जमीन हड़पने के बजाय स्वेच्छा से होना चाहिए।”

सभरवाल मानते हैं कि एकमात्र दीर्घावधि का समाधान है ग्रामीण क्षेत्रों को रोजगार सृजन के लिए बेहतर जगह बनाना। “अल्पावधि में, हमें लोगों को नौकरियों तक ले जाना है। भारत में केवल 34 शहर हैं पर इनमें दस लाख से ज्यादा लोग बसते हैं। इसके विपरीत, हमारे 6 लाख गांवों में से 2 लाख गाँव ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या 200 से भी कम है। नये शहरों के अभाव में नौकरियाँ इन्हीं अटे पड़े शहरों तक सीमित हैं। दीर्घकालिक समाधान यही है कि शिक्षा और रोजगार साथ साथ चलें और यह तभी होगा जब बुनियादी सुविधाओं, शिक्षा, कौशल विकास और श्रम कानूनों की मौजूदा व्यवस्था में भारी सुधार हो।”

Knowledge@Wharton से अनुबंध के अंतर्गत प्रकाशित। हिन्दी अनुवादः देबाशीष व रमण कौल

One thought on “रोजगार पोर्टल पहुंचे गाँव देहात”

  1. ये तो बहुत खुशी की बात है कि वैश्वीकरण के दौर में कुछ लोग गाँवों को भी याद कर रहे हैं और उन्हें विश्वास है कि गाँव में भी ‘काम के लोग’ मिल सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Enable Google Transliteration.(To type in English, press Ctrl+g)

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

अंतर्जाल

फ़ेसबुक का इंद्रासन हिलाने आया गूगल+?

ओरकुट की विफलता के बाद गूगल की फ़ेसबुक के समानांतर एक नये सोशल प्लेटफॉर्म के निर्माण के बारे में बता रहे हैं रविशंकर श्रीवास्तव।

पूरा पढ़ें
अंतर्जाल

रॉकमेल्ट ब्राउज़र : फ़ेसबुकिया वेब की पराकाष्ठा?

सोशियल ब्राउज़र की शुरूआत मोजिल्ला आधारित फ्लॉक ब्राउज़र से हुई थी जिसमें ब्राउज़र में ही ब्लॉगिंग की तमाम सुविधाएँ मौजूद थी। सामयिकी संपादक रविशंकर श्रीवास्तव मानते हैं कि रॉकमेल्ट ब्राउज़र उससे भी एक कदम आगे है।

पूरा पढ़ें
अंतर्जाल

फेसबुक और एमएस आफिस बने दोस्त

डॉक्स.कॉम एमएस ऑफ़िस सूट 2010 के तहत उपलब्ध ऑफ़िस लाइव वेब एप्स की तरह ही है, मगर इसे बेहद लोकप्रिय सामाजिक नेटवर्क साइट फ़ेसबुक से जोड़ने के लिहाज से डिजाइन किया गया है।

पूरा पढ़ें