फेसबुक और एमएस आफिस बने दोस्त

Docs.com

मारी कंप्यूटिंग की दुनिया तेजी से क्लाउड की ओर अग्रसर है – मतलब ये कि वो पूरी तरह ऑनलाइन होने जा रही है। इसके प्रत्यक्ष प्रमाण रूप में जब माइक्रोसॉफ़्ट ने अपने ऑफ़िस सूट 2010 (जिसमें तमाम आफिस तंत्राँश जैसे कि वर्ड, एक्सेल, पॉवर प्वाइंट आदि शामिल होते हैं) को जारी किया तो उसमें न केवल ऑनलाइन दस्तावेज़ों के संपादन व साझा करने की सुविधा मुहैया कराई बल्कि ऐसे प्रयोक्ताओं के लिए जो ऑफ़िस सूट ख़रीद कर प्रयोग करने की कतई श्रद्धा नहीं रखते थे, डॉक्स.कॉम-बीटा नाम से ऑफ़िस सूट 2010 का ऑनलाइन संस्करण भी फ़ेसबुक के रास्ते जारी किया।

हालांकि माइक्रोसॉफ़्ट फ्यूज लैब्स द्वारा जारी डॉक्स.कॉम अब अभी अपने बीटा संस्करण में ही है और इसमें संपूर्ण ऑफ़िस सूट की सुविधाएँ शामिल नहीं की गई हैं, मगर इस पर त्वरित नजर डालने से इसकी संभावनाओं सुविधाओं के बारे में मालूमात किए जा सकते हैं और ये भी कयास लगाए जा सकते हैं कि भविष्य में क्लाउड कंप्यूटिंग का बिज़नेस मॉडल किस तरह आकार ग्रहण करेगा। यकीनन व्यक्तिगत या घरेलू प्रयोग करने वाला प्रयोक्ता आने वाले समय में बेहद फायदे में रहेगा क्योंकि उसे भारी भरकम राशि खर्च कर महंगे सॉफ़्टवेयर उत्पाद खरीदने नहीं पड़ेंगे। आमतौर पर सभी प्रमुख ऑनलाइन उत्पाद उसे मुफ़्त या अत्यंत किफायती कीमतों में और पूर्णतः कानूनी तरीके से हासिल होंगे। पर्सनल कंप्यूटिंग के संदर्भ में यह बहुत महत्वपूर्ण बात होगी।

यदि आपने ऑफ़िस 2007 या 2010 पर काम किया हुआ है तो डॉक्स.कॉम पर काम करना बेहद आसान है। हालांकि ऑनलाइन प्रयोग के लिहाज से सिर्फ बेहद उपयोगी मेन्यू को ही रखा गया है।

यूं तो डॉक्स.कॉम एमएस ऑफ़िस सूट 2010 के तहत उपलब्ध ऑफ़िस लाइव वेब एप्स की तरह ही है, मगर इसे बेहद लोकप्रिय सामाजिक नेटवर्क साइट फ़ेसबुक से जोड़ने के लिहाज से डिजाइन किया गया है। वस्तुतः आपको डॉक्स.कॉम का प्रयोग करने के लिए माइक्रोसॉफ़्ट लाइव आईडी खाते से नहीं बल्कि फ़ेसबुक खाते से ही लॉगइन करना होता है। प्रथम पंक्ति के व्यावसायिक सॉफ़्टवेयर निर्माताओं के ये कदम चौंकाने वाले हैं कि वे अपने उत्पादों के मुफ़्त संस्करण जारी कर रहे हैं और उसका प्रचार प्रसार करने के लिए फ़ेसबुक जैसे लोकप्रिय प्लेटफ़ॉर्मों के कंधे पर सवार हो रहे हैं। हालांकि इन आनलाइन अनुप्रयोगों में तमाम सुविधाओं का होना लगभग नामुमकिन ही होता है ओर एक तरह से यह ग्राहक को असली उत्पाद बेचने की परोक्ष विपणन नीति का ही नतीजा होते हैं।

डॉक्स.कॉम में आप क्या कर सकते हैं?

फ़ेसबुक खाते से लॉगिन (जी हाँ यदि आपके पास फ़ेसबुक खाता नहीं है तो आप डॉक्स.कॉम का प्रयोग नहीं कर सकते) करने के बाद डॉक्स.कॉम को ऑनलाइन माइक्रोसॉफ़्ट ऑफिस की तरह प्रयोग कर सकते हैं। आप नए दस्तावेज़ बना सकते हैं, अपने कंप्यूटर से दस्तावेज़ों (वर्ड, एक्सेल, पॉवर प्वाइंट, पीडीएफ़ इत्यादि) अपलोड कर सकते हैं और साथ ही अपने फ़ेसबुक मित्रों द्वारा साझा किये दस्तावेज़ देख सकते हैं, ओर यदि अनुमति रही तो उनमें संपादन इत्यादि भी कर सकते हैं।

वस्तुतः डॉक्स.कॉम पर काम करना बेहद आसान है। यदि आपने ऑफ़िस 2007 या 2010 पर काम किया हुआ है तो डॉक्स.कॉम का कलेवर भी बहुत कुछ उसी तरह का रिबन इंटरफ़ेस युक्त है। हालांकि ऑनलाइन प्रयोग के लिहाज से सिर्फ बेहद उपयोगी मेन्यू को ही रखा गया है, अन्य मेन्यू विकल्पों को हटा दिया गया है। मेन्यू में क्लिक करने पर कुछ फ़ीचर्स पॉप-अप के रूप में प्रकट होते हैं जो कि बहुत से नए ब्राउज़रों में पॉप-अप ब्लॉकर द्वारा रोके गए होते हैं, ऐसे में डॉक्स.कॉम को प्रयोग करने में परेशानी हो सकती है।

इसी प्रकार, चूंकि डॉक्स.कॉम को ऑनलाइन प्रयोग के लिए डिजाइन किया गया है इसीलिए आपको अपने दस्तावेज़ों में पृष्ठ हाशिए, क्रमांकन इत्यादि की सेटिंग के लिए भी सुविधाएँ नहीं मिलेंगी जो कि प्रिंट माध्यम में आवश्यक होती हैं। कुछ ऐसा ही हाल पॉवर प्वाइंट का है जहाँ आप किस भी तरह की मौजूदा फाईल तो अपलोड कर देख सकते हैं पर उन्हें संपादित करते समय चित्र जोड़ना या रिसाईज़ करना मुमकिन नहीं, हालांकि स्लाईडों के क्रम बदलने जैसे साधारण काम संभव हैं।

कौन बेहतर, डॉक्स.कॉम या गूगल डॉक्स?

डॉक्स.कॉम को एक परिपूर्ण ऑनलाइन ऑफ़िस सूट की तरह डिजाइन नहीं किया गया है, जैसा कि गूगल डॉक्स है। इसीलिए दोनों में तुलना करना दरअसल बेमानी होगी, क्योंकि सुविधा और संपन्नता में गूगल डॉक्स कहीं आगे है। डॉक्स.कॉम को सामाजिक नेटवर्क साइटों में सामान्य किस्म के दस्तावेज़ों के साझा करने के लिहाज से बनाया गया है। इसलिए यदि आप कोई दस्तावेज़ डॉक्स.कॉम में बनाते हैं तो वह तत्काल ही आपके मित्रों को उपलब्ध हो जाता है। आपक मित्रों की सूची तथा दस्तावेज़ में देखने/बदलने/संपादन इत्यादि को भी सेट कर सकते हैं। डॉक्स.कॉम अभी बीटा स्तर पर है इसलिए अभी इसमें बहुत सारे बग भी हैं और बहुत सी सुविधाएँ ढंग से काम ही नहीं करतीं। पर हाँ रूप रंग के मामले में डॉक्स.कॉम शायद बाज़ी मार ले जाये।

डॉक्स.कॉम पर कुछ और हल्के फुल्के जुगाड़ भी हैं जो शायद हर तरह के प्रयोक्ताओं के लिये कुछ न कुछ बनाने की नीति से रखे गये हैं। मसलन फेसबुक पर दी जानकारी के आधार पर रेज्यूमे बना सकने, या फेसबुक के चित्रों से फोटो शो या उनकी जानकारी के आधार पर फ्रेंड चार्ट (दरअसल यह दोस्तों की उम्र, लिंग, गृहनगर आदि जानकारी के आधार पर बने एक्सेल ग्राफ भर होते हैं) बना सकने के जुगाड़।

डॉक्स.कॉम पर भारतीय भाषाओं का प्रयोग

डॉक्स.कॉम में भारतीय भाषाओं का बढ़िया समर्थन है। हिंदी में काम करने में कोई विशिष्ट समस्या नजर नहीं आई। इसके वर्तनी जाँचक मेन्यू में चुनिंदा भारतीय भाषाओं जैसे कि हिंदी, गुजराती, मलयालम, तमिल इत्यादि में वर्तनी जाँच की सुविधा भी उपलब्ध है, हालांकि हिंदी वर्तनी जाँच में अभी दिक्कतें हैं, यह अभी काफी बगी है – यानी हिंदी वर्तनी जाँच को अभी डॉक्स.कॉम सही तरीके से अंजाम नहीं दे पाता। डॉक्स.कॉम को भारतीय भाषाओं के लिहाज से परिष्कृत करने की आवश्यकता है, क्योंकि किसी खास भाषा के लिहाज से कोई भी ऑफ़िस सूट एक बढ़िया और उन्नत किस्म के वर्तनी जाँचक के बगैर सदैव बेकार और अनुपयोगी ही बनी रहेगा।

कुल मिलाकर डॉक्स.कॉम काम का प्रकल्प है। यदि आप पहले से ही फ़ेसबुक खाताधारी हैं, तो छोटे-मोटे दस्तावेज़ बनाने (जैसे कि कोई छोटी सी कुकिंग रेसिपि, किसी इवेंट की तैयारी व हिसाब किताब के लिये बनी एक्सेल स्प्रेडशीट या किसी सभा में आपकी प्रस्तुति के स्लाइड) व उसे मित्रों में तुरत-फुरत साझा करने के लिए डॉक्स.कॉम का प्रयोग कर सकते हैं। यदि आपके फ़ेसबुक खाताधारी नहीं हैं, या आपको व्यावसायिक स्तर की या एमएस आफिस के डेस्कटॉप अनुप्रयोग जैसी सुविधाएँ व दस्तावेज़ चाहिये, तो डॉक्स.कॉम में आपके लिए वैसे भी कुछ नहीं है। ऐसे में ऑनलाइन ऑफ़िस सूट के लिए आपके पास अन्य उत्तम विकल्प हैं – गूगल डॉक्स या जोहो

4 thoughts on “फेसबुक और एमएस आफिस बने दोस्त

  1. आप ने हिंदी और हिंदी भाषियों का बहुत फायदा किया है.

  2. वैसे क्लाउड क्म्पुटिंग यूं तो बहुत अच्छी तकनीक है पर भारत में इन्टरनेट के सुविधा के बिना यह थोडा मुश्किल है, हालांकि ओपन ऑफिस तथा ओपन सोर्स सॉफ्टवेर से मेरा यह काम तो हो जाता है|

Comments are closed.

अंतर्जाल

फ़ेसबुक का इंद्रासन हिलाने आया गूगल+?

ओरकुट की विफलता के बाद गूगल की फ़ेसबुक के समानांतर एक नये सोशल प्लेटफॉर्म के निर्माण के बारे में बता रहे हैं रविशंकर श्रीवास्तव।

पूरा पढ़ें
अंतर्जाल

रॉकमेल्ट ब्राउज़र : फ़ेसबुकिया वेब की पराकाष्ठा?

सोशियल ब्राउज़र की शुरूआत मोजिल्ला आधारित फ्लॉक ब्राउज़र से हुई थी जिसमें ब्राउज़र में ही ब्लॉगिंग की तमाम सुविधाएँ मौजूद थी। सामयिकी संपादक रविशंकर श्रीवास्तव मानते हैं कि रॉकमेल्ट ब्राउज़र उससे भी एक कदम आगे है।

पूरा पढ़ें
अंतर्जाल

रोजगार पोर्टल पहुंचे गाँव देहात

भले यह बात अकल्पनीय लगे पर खास ग्रामीण भारत के लिए रोजगार जुटाने वाले जॉब पोर्टल न केवल सफलतापूर्वक चल रहे हैं बल्कि मुनाफा भी कमा रहे हैं।

पूरा पढ़ें